IISc की नई अटेंडेंस पॉलिसी पर बवाल, छात्रों ने जताई नाराजगी

IISc Bengaluru की नई अटेंडेंस पॉलिसी को लेकर छात्रों का विरोध, मानसिक स्वास्थ्य और रिसर्च फ्रीडम पर उठे सवाल
IISc Bengaluru की नई अटेंडेंस पॉलिसी को लेकर छात्रों का विरोध, मानसिक स्वास्थ्य और रिसर्च फ्रीडम पर उठे सवाल

IISc की नई अटेंडेंस पॉलिसी पर बवाल, छात्रों ने जताई नाराजगी

बेंगलुरु: भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc Bengaluru) की नई अटेंडेंस पॉलिसी को लेकर सोशल मीडिया पर बवाल मच गया है। छात्रों ने इस नई व्यवस्था को "कॉर्पोरेट कल्चर" बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी है और कहा कि यह मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकती है।

IISc के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम इंजीनियरिंग (ESE) विभाग में हाल ही में एकीकृत उपस्थिति (Integrated Attendance) और पार्किंग सिस्टम लागू किया गया है। इस फैसले के बाद छात्रों ने संस्थान के खिलाफ सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जाहिर की है।

क्या है नई अटेंडेंस पॉलिसी?

रिपोर्ट्स के मुताबिक, ESE विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मयंक श्रीवास्तव ने छात्रों और कर्मचारियों को भेजे एक आंतरिक लेटर में बताया कि नई नीति का उद्देश्य “काम के प्रति प्रतिबद्धता बढ़ाना” है, न कि सख्ती करना।

नई नीति के अनुसार —

  • स्थाई और संविदा कर्मचारी को हर हफ्ते 40 घंटे काम करना होगा।
  • MTech और PhD (पहले वर्ष) के छात्रों को कम से कम 50 घंटे सप्ताह में लैब में उपस्थित रहना अनिवार्य होगा।
  • PhD स्कॉलर्स के लिए यह समय 70–80 घंटे प्रति सप्ताह तय किया गया है।

छात्रों का कहना – मानसिक स्वास्थ्य पर असर

नई नीति को लेकर छात्रों में नाराजगी बढ़ती जा रही है। एक छात्र ने कहा — “यह पॉलिसी कॉर्पोरेट कल्चर जैसी लगती है, जो रिसर्च की स्वतंत्रता खत्म कर देती है। शोध के लिए दिमाग की आज़ादी चाहिए, टाइम-टेबल नहीं।”

कई छात्रों ने दावा किया कि यह नीति रिसर्चर्स पर "अनुचित दबाव" डाल रही है और इससे मानसिक तनाव बढ़ सकता है।

सोशल मीडिया पर विरोध तेज

LinkedIn और X (Twitter) पर छात्रों और पूर्व छात्रों ने इस फैसले को लेकर खुलकर नाराजगी जताई। एक रिसर्च स्कॉलर आनंद प्रभाकर ने लिखा — “यह सिर्फ IISc में नहीं हो रहा, IIT और NITs में भी यही चल रहा है। रिसर्च का मतलब है स्वतंत्रता और सोच की आज़ादी — लेकिन अब सब कुछ सिस्टम में बंधा हुआ है।”

उन्होंने आगे लिखा कि छात्रों पर "तनावपूर्ण माहौल में रिसर्च करने का दबाव" डाला जा रहा है और यह “ज्ञान की आज़ादी” के खिलाफ है।

प्रोफेसर मयंक श्रीवास्तव का बयान

आईआईएससी प्रशासन की ओर से कहा गया है कि नई अटेंडेंस पॉलिसी का उद्देश्य किसी पर सख्ती करना नहीं है, बल्कि संस्थान में कार्य संस्कृति को बेहतर बनाना है।

प्रोफेसर श्रीवास्तव के लेटर में लिखा है — “यह प्रणाली अनुशासन थोपने के लिए नहीं, बल्कि काम के प्रति निष्ठा और प्रोफेशनलिज्म बढ़ाने के लिए है। छात्रों को अपनी सुविधानुसार समय चुनने की आज़ादी रहेगी।”

छात्रों की चिंता: “फ्रीडम ऑफ रिसर्च” पर खतरा

छात्रों का कहना है कि रिसर्च कोई 9 से 5 की नौकरी नहीं होती। इसमें रचनात्मकता और आज़ादी जरूरी होती है। उन्होंने प्रशासन से अपील की है कि यह नीति वापस ली जाए या लचीली बनाई जाए।

सोशल मीडिया पर ट्रेंड हुआ #IIScAttendancePolicy

विरोध इतना बढ़ गया है कि #IIScAttendancePolicy ट्विटर और LinkedIn पर ट्रेंड करने लगा। कई पूर्व छात्रों ने भी संस्थान से इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की अपील की।

निष्कर्ष

IISc Bengaluru की नई अटेंडेंस पॉलिसी ने संस्थान के छात्रों और शिक्षकों के बीच बड़ी बहस खड़ी कर दी है। एक तरफ संस्थान इसे अनुशासन और पारदर्शिता की दिशा में कदम बता रहा है, वहीं छात्र इसे स्वतंत्रता पर नियंत्रण मान रहे हैं। अब देखना होगा कि प्रशासन इस विवाद पर क्या फैसला लेता है।


IISc Attendance Policy 2025 – सामान्य प्रश्न (FAQs)

1. IISc की नई अटेंडेंस पॉलिसी क्या है?

नई नीति के अनुसार छात्रों और स्टाफ को सप्ताह में तय घंटों तक लैब या संस्थान में रहना होगा — कर्मचारियों को 40 घंटे, MTech छात्रों को 50 घंटे और PhD स्कॉलर्स को 70–80 घंटे।

2. छात्रों ने इसका विरोध क्यों किया?

छात्रों का कहना है कि यह नीति “कॉर्पोरेट कल्चर” जैसी है और इससे मानसिक स्वास्थ्य और रिसर्च की स्वतंत्रता पर असर पड़ेगा।

3. यह पॉलिसी कब लागू की गई?

IISc के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम इंजीनियरिंग (ESE) विभाग में हाल ही में यह नीति लागू की गई है।

4. संस्थान की ओर से क्या कहा गया?

संस्थान ने कहा कि यह नीति सख्ती के लिए नहीं, बल्कि कार्य संस्कृति को मजबूत करने और जिम्मेदारी बढ़ाने के लिए लाई गई है।

5. क्या अन्य IIT या NIT में भी ऐसी नीति है?

कई छात्रों ने दावा किया है कि IIT और NIT जैसे संस्थानों में भी समान अटेंडेंस और वर्क-आवर पॉलिसी लागू है।

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